संक्रामक रोग

संक्रामक रोग किसे कहते हैं

  • संक्रामक रोग का अर्थ ऐसे रोगों से है जो एक मनुष्य या जीव से दूसरे मनुष्य या जीव में फैलते हैं.
  • इस तरह के रोग किसी न किसी रोगजनित कारकों (रोगाणुओं) जैसे बैक्टीरिया, वाइरस, प्रोटोज़ोआ, यीस्ट, इत्यादि के माध्यम से एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में फैलकर उसे संक्रमित कर सकते हैं. 
  • अर्थात् ये रोग सूक्ष्म जीवों से फैलते हैं।
  • संक्रामक रोगों के उदाहरण हैं: मलेरिया, टायफायड, चेचक, इन्फ्लुएन्जा इत्यादि.

संक्रामक रोग कैसे फैलता है | संक्रामक रोग फैलने के कारण

आपसी संपर्क से

  • ये त्वचा के संपर्क से, कपड़ों के संपर्क से या यौन-संबंधों से फैलती हैं।
  • उदाहरण: यौन रोग जैसे- सिफिलिस, गोनोरिया, एड्स, सुजाक आदि। अन्य रोग जैसे- लॅप्रोसी (कुष्ठ रोग), कलकल (स्कर्वी), चिकेन पॉक्स, आदि।

हवा से

  • ये साँस और मुँह से बहुत से फैलती हैं।
  • उदाहरण: टी.बी. (तपेदिक), खसरा, सर्दी-जुकाम, डिप्थीरिया आदि।
  • कभी-कभी ये महामारी का रूप ले लेते हैं- जैसे- इन्फ्लुएंजा आदि। ऐसे वायरस या बैक्टीरिया व्यक्ति के साँस लेने की प्रक्रिया के साथ बाहर निकलते हैं और दूसरे व्यक्ति के नाक या मुँह के रास्ते उनके शरीर में संक्रमित हो जाते हैं।

दूषित जल से

  • ये पानी के साफ़ सुथरा न रखने से फैलती हैं।
  • उदाहरण: कॉलरा (हैजा), टाइफॉइड (मियादी बुखार), डायरिया (अतिसार), पोलियो, हेपिटाइटिस-ए (जौंडिस-पीलिया), आदि।
  • इनमें बहुत सी बीमारियाँ स्थानीय स्तर तक ही सीमित रहती हैं पर कभी-कभी वे महामारी का रूप भी ले लेती हैं। ध्यान रहे इनमें वे बीमारियाँ नहीं हैं जो जल में घुलनशील विषैले रसायनों द्वारा उत्पन्न होती हैं।

मिट्टी से

  • व्यक्ति जब पैर या हाथ से मिट्टी के सम्पर्क में आता है तो उसमें मौजूद परजीवी या बैक्टीरिया उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।
  • उदाहरण: टेटनेस, राउन्ड वर्म, हुक वर्म आदि को रख सकते हैं। ये जीवाणु मिट्टी में सक्रिय रूप में या स्पोर (spore) के रूप में मौजूद रहते हैं।

जीव जंतुओं से

  • हमारे आसपास मौजूद जीव-जन्तुओं के भीतर जीवाणु फलते-फूलते और संरक्षित होते हैं और बाद में मनुष्य के भीतर संक्रमित हो जाते हैं।
  • कुछ रोग जानवरों के काटने से भी मनुष्य में फैलते हैं जैसे (i) रैबीज- यह संक्रमित कुत्ते, बन्दर, बिल्ली के माध्यम से फैलते हैं। (ii) प्लेग- यह चूहे के माध्यम से आदमी तक फैलता है।

संक्रमित भोजन से

  • भोजन जो बैक्टीरिया या परजीवी द्वारा संक्रमित होते हैं, और उसे यदि व्यक्ति खाता है तो यह उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।
  • उदाहरण: एमीबियेसिस, फूड प्वायजनिंग (भोजन विषाक्तता), टेप वर्म इन्फेक्शन (संक्रमित मवेशियों के माँस खाने से फैलता है)।

मच्छर-मक्खियों से

  • बहुत सी बीमारियाँ मक्खी और मच्छर के कारण फैलती हैं।
  • उदाहरण: डेंगू फाइलेरिया, मलेरिया, डायरिया, चिकनगुनिया आदि।

संक्रामक बीमारियाँ फैलती कैसे हैं

इसे समझने के लिए तीन बातों की कल्पना कीजिए.

(1) कौन-कौन से जीवाणु हैं, जो रोग उत्पन्न करते हैं ? इन जीवाणुओं में वायरस, बैक्टीरिया – एवं परजीवी प्रमुख हैं। इन जीवाणुओं में खुद चलकर फैलने की क्षमता नहीं होती- इन्हें किसी माध्यम की जरूरत होती है, जहाँ ये अपने को बढ़ाते और दूसरे तक फैलने का आश्रय पाते हैं। उचित माध्यम न मिलने पर ये जीवाणु या तो नष्ट हो जाते हैं या चुपचाप पड़े रहते हैं, जब तक इन्हें अनुकूल वातावरण नहीं मिलता।

(ii) संवाहक (Vector) – बहुत से संवाहक हैं जो जीवाणुओं को फैलने में मदद करते हैं जैसे-वायु, जल, मच्छर, मक्खी, पशु-पक्षी आदि। इनमें कुछ तो उनके लिए संरक्षक (Reservoir) का काम करते हैं, और कुछ हैं जिनमें ये जीवाणु अपना विकास करते हैं तथा संक्रामक रूप धारण करते हैं- और कुछ ऐसे हैं जो सिर्फ एक से दूसरे व्यक्ति तक फैलाते हैं लेकिन खुद उसमें शामिल नहीं होते हैं। I

(iii) पर्यावरण (Environment)- बहुत से जीवाणु गर्मी- बरसात के मौसम में ज्यादा तेजी से फैलते हैं तो कुछ सर्दियों में साल का अलग-अलग महीना, अलग-अलग जीवाणुओं के लिए अलग-अलग रूप से अनुकूल या प्रतिकूल होता है।

संक्रामक रोगों के नाम | संक्रामक रोग के उदाहरण | संक्रामक रोग के लक्षण

अतिसार (Diarrhoea)

  • यह बीमारी छोटे बच्चों में यह सबसे जल्दी होती है, क्योंकि बच्चों की पाचन प्रणाली बहुत ही नाजुक होती है। अगर उपचार नहीं किया तो मृत्यु तक हो जाती है।
  • पतले व पानी जैसे मल का बार-बार होना डायरिया या दस्त कहलाता है।
  • उसके साथ यदि श्लेष्मा (Mucus) और खून भी आये तो उसे डिसेन्ट्री (Dysentry) या पेचिश / आमातिसार कहते हैं।
  • इससे शरीर में निर्जलन (Dehydration) हो जाता है, जिसके कम्पलीकेशन के फलस्वरूप व्यक्ति मर भी सकता है खासकर बच्चे।
  • यदि डायरिया के साथ उल्टी (Vomating) भी हो तो गंभीरता बहुत बढ़ जाती है।
  • कई तरह के वायरस, बैक्टीरिया परजीवी तथा विषैले पदार्थ डायरिया के कारक है।
  • यह अक्सर प्रदूषित कारण जल, भोजन, खराब बासी खाना या फिर गंदे हाथों से खाना खाने के कारण होता और फैलता है

ये कुछ वायरस, वैक्टीरिया परजीवी के नाम हैं, जिनके कारण डायरिया होता है

  • जीवाणु सालमोनेला. शिजेला विग्रियो कॉलरी, ई-कोलाई, क्लोस्ट्रिडिया आदि।
  • विषाणु रोटा वायरस, कोना वायरस आदि ज्यादातर बच्चों को।
  • परजीवीएन्टअमीबा हिस्टोलिटिका, जियार्डिया, लैम्बिया आदि।
  • अस्वच्छ व असुरक्षित ढंग से बोतल से दूध पिलाने से।
  • मक्खियों इसकी सबसे बड़ी वाहक हैं। वह गंदगी पर बैठकर फिर भोजन और पानी को प्रदूषित करती है।

रोकथाम:

  • खाना बनाने खाना रखने तथा खाना खाते समय साफ-सफाई और स्वच्छता का पूरा ध्यान रखना चाहिए-खाना ढ़ककर पकाएं, खुला न छोड़ें, हाथ धोकर ही खाएं ताजा खाना खाएं आसपास मक्खियाँ न हों- ये सब बातें ध्यान देने की हैं।
  • शौच- शौचालय में ही जाएं, अगर बाहर जाएं तो उसे मिट्टी से ढ़क दें।
  • शौच के बाद हाथ को साबुन और पानी से अच्छी तरह धो लें।
  • पानी तथा बर्फ का शुद्धीकरण उनका क्लोरीनेशन जरूरी है।
  • चापाकलों (हैंडपंप), नलों व कुओं के समीप जल निकासी की उचित व्यवस्था रखें।
  • खुले में रखा खाना, बासी खाना, रेड़ी और खोमचे पर के खाने से दूर ही रहें क्योंकि मक्खियाँ, कीड़े और उड़कर आई हुई धूल इन्हें प्रदूषित कर देता है।
  • लोगों को प्रशिक्षित करें कि डायरिया क्या है, कैसे फैलता है तथा कैसे बचा जा सकता है।
  • भोजनालय, रेस्टोरेन्ट तथा सार्वजनिक भोज में साफ-सफाई की समय-समय पर निगरानी
  • व्यक्तिगत व पर्यावरणीय स्वच्छता का उचित ध्यान दें।

टिटेनस (Tetanus)

  • टिटेनस बैसिलस बैक्टीरिया द्वारा उत्पन्न होने वाली एक घातक बीमारी है।
  • यह कुछ दशक पहले तक बहुतायत में हुआ करती थी। अब तक सघन टीकाकरण के कारण यह बहुत कम हो गया है।
  • भारत में इसे धनुष्टंकार” नाम से जाना जाता है।
  • यह क्लॉस्ट्रेडिया टिटेनी नामक बैक्टीरिया द्वारा होता है।

टिटेनस कैसे होता है ?

  • क्लोस्ट्रिडिया टिटेनी नामक बैक्टीरिया के स्पोर्स गंदे जगहों में पड़े रहते हैं।
  • ये जब कटे-फटे भागों या घाव के रास्ते हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं तो उससे मुक्त होने वाले घातक एक्सोटॉक्सिन इस बीमारी के लक्षण उत्पन्न करते हैं।
  • बैक्टीरिया अपने स्पोर या बीजाणु के रूप में धूल में पड़ा रहता है और अनुकूल समय और वातावरण आने पर पुनर्जीवित हो फलने फूलने लगता है।

लक्षण

  • बैक्टीरिया द्वारा मुक्त किये गये एक्सोटॉक्सिन प्रभावित व्यक्ति के स्नायुतंत्र को प्रभावित करते हैं। फलस्वरूप तीव्र दर्द होता है और रीढ़ में तनाव के कारण व्यक्ति धनुषाकार हो जाता है।
  • इसकी तीव्रता धीरे-धीरे इतनी तेज हो जाती है प्रभावित व्यक्ति व्यक्ति धनुष की तरह टेढा दिखाई देने लगता है। व्यक्ति का जबड़ा भी टेढ़ा हो जाता है और व्यक्ति कुछ बोल नहीं पाता।
  • आखिरी वक्त तक व्यक्ति की चेतना लुप्त नहीं होती- वह पूरी तरह होश में रहता है। आखिरकार पूरे उपचार के बावजूद अधिकांश व्यक्ति मृत्यु तक पहुँच जाते हैं।
  • नवजात शिशुओं में टिटेनस का खतरा अधिक रहता है। इसे टिटेनस निओनेटोरम कहते हैं। खासकर घर में होनेवाले प्रसव में जहाँ सफाई और एन्टीसेप्सिस का प्रबंध नहीं होता। इसमें गर्भनाल के रास्ते संक्रमण बच्चे तक पहुँच जाता है।

रोकथाम के उपाय

  • टिटेनस टॉक्सॉयड के इन्जेक्शन के द्वारा हम टिटेनस को बहुत हद तक रोक सकते हैं।
  • यह एक सुरक्षित पर शक्तिशाली सक्रिय (Active) वैक्सिन है। इसके दो इन्जेक्शन स्वस्थ व्यक्ति के मांसपेशियों में एक-एक माह के अंतराल पर लगाते हैं। फिर हर पाँच साल पर इसका बूस्टर डोज देते हैं।
  • गर्भवती महिलाओं को पूरे गर्भकाल में यदि पहला बच्चा है तो दो नहीं तो एक टीका टिटनेस टॉक्सॉयड का लगाते हैं। इससे नवजात शिशुओं में होने वाले टिटेनस (Tetanus Neonatorum) का खतरा कम हो जाता है।

  • टिटेनस का मरीज अन्त समय तक पूरे होशोहवास में रहता है जबकि उसका स्नायुतंत्र काम करना बन्द कर देता है।
  • मरीज को पूर्णतः अंधेरे में रखने पर टिटेनस का दौरा कम आता है, जबकि उजाले में या शोरगुल में यह दौरा ज्यादा आता है।
  • मरीज को उपचार के लिए जितनी जल्दी पहुँचाते हैं, रिकवरी होने की संभावना उतनी ही अधिक है, देर करने से रिकवरी नहीं हो पाती।
  • गर्भावस्था में माँ को दिया गया टीका बच्चे के भीतर भी रोग प्रतिरोधक शक्ति (इम्यूनिटी) पैदा कर देता है जिसे हम DPT के खुराक के साथ बूस्ट करते हैं।
  • गंदे जगहों पर टिटेनस के स्पोर्स (बीजाण्ड) मिल सकते हैं पर गोबर, मिट्टी या जंग से उसका कोई लेना-देना नहीं है गाँव में फैले ये अफवाह सही नहीं है।

खसरा (Measles)

  • बच्चों को होने वाली यह बहुत ही आम बीमारी है।
  • यह बीमारी विकासशील तथा घनी आबादी वाले क्षेत्रों में ज्यादातर देखी जाती है। य
  • ह वायरस के संक्रमण से होती है तथा वायु-मार्ग यानी श्वास-प्रश्वास से फैलती है।
  • खसरे का वायरस मुँह के लार, श्वास-प्रश्वास आदि के माध्यम से संक्रमित होता है तथा हमारी श्वास – नलिका में अवस्थित रहता है।

खसरे के लक्षण (Symptoms & Signs)

  • तेज बुखार, सर्दी, खाँसी के साथ आँखे लाल हो जाया करती हैं।
  • उल्टी तथा पतले दस्त भी हो सकते हैं।
  • इसमें शरीर के पूरे भाग में महीन-महीन लाल दाने हो जाते हैं, जो मिलकर चकत्ते के रूप में दिखाई देते हैं।
  • ये दाने कान के पीछे, गर्दन तथा चेहरे पर अधिक एवं अन्य भागों में कम होते हैं।

  • एक बार होने के बाद यह दुबारा बहुत ही कम होता है।
  • यह प्रायः छः माह के बाद तथा 5 वर्ष की आयु के पहले होता है। माँ के दूध में पाए जाने वाले एन्टीबॉडी के कारण दूध पीने वाले शिशु इससे सुरक्षित रहते हैं।
  • कुपोषण से ग्रस्त बच्चे इसका अधिक शिकार होते हैं तथा उनमें जटिलतायें भी अधिक होती हैं।
  • सर्दी (जाड़े) के मौसम में यह अक्सर फैलता है।

चिकन पॉक्स (Chicken Pox)

  • यह एक वायरस से उत्पन्न होने वाली मौसमी बीमारी है और यह अक्सर अप्रैल से सितंबर के महीने में फैलती है।
  • वैसे तो यह कभी किसी भी उम्र में हो सकती है पर 10 वर्ष की आयु तक के लोग इससे ज्यादा प्रभावित होते हैं।
  • गाँव में अक्सर लोग इसे चेचक कहते हैं, जो सही नहीं है। चेचक Small-Pox को कहते हैं, जिसे 1971 में ही पूरी दुनिया से खदेड़कर भगा दिया गया है। यह वैरिसेला जोस्टर नामक वायरस के कारण होता है और खुद ही कुछ दिनों में सिमट जाता (Self-Limiting disease) है|

लक्षण (Symptoms & Signs)

  • मरीज को सर्दी खाँसी के साथ बुखार, ठंड तथा पूरे शरीर में दर्द का अनुभव होता है।
  • बुखार के साथ शरीर पर दाने दिखाई देने लगते हैं।
  • पेट और छाती तथा पीठ पर दानों की संख्या अधिक रहती है, पर ये दाने पैर, हाथ और चेहरे पर भी प्रकट हो सकते हैं।
  • दाने एक साथ प्रकट होते हैं जो इसकी खासियत है।
  • त्वचा पर निशान रह जाते हैं, जो धीरे-धीरे मलिन होते हुए लगभग खत्म हो जाते हैं। औसतन यह बीमारी 17 दिनों की होती हैं, जो 7-21 दिनों के बीच तक हो सकती है।

पोलियो (Polio )

  • आपने अपने आस-पास जरूर कोई बच्चा या ऐसा व्यस्क देखा होगा जो ठीक से चल नहीं पा रहा है और बड़े-बूढ़े लोगों से सुना होगा कि इसे पोलियो हो गया है।
  • यह बचपन में होने वाली बीमारी है। इसमें कभी-कभी पैर निष्क्रिय हो जाता है।
  • यह एक वायरल रोग है तथा आत के रास्ते संक्रमित होता है। यह वायरस संक्रमित व्यक्ति के स्नायु और पेशीय तन्तुओं पर असर डालता है।
  • इससे ज्यादातर पाँच वर्ष तक के बच्चे ही प्रभावित होते हैं। अधिक उम्र के बच्चे इस रोग से कम प्रभावित होते हैं।

वायरस का संक्रमण

  • पोलियो का वायरस बच्चों के शरीर में मुख के रास्ते प्रवेश करता है और छोटी आँत में पहुँचकर रक्त के रास्ते उसके स्नायु तत्र (Nervous System) को प्रभावित करता है।
  • यह वायरस मल, नाक और मुँह के स्राव में मौजूद रहता है। वायरस से प्रदूषित जल भी इसका स्रोत है।
  • वायरस को रसायनों तथा अन्य भौतिक विधियों से नष्ट किया जा सकता है।
  • यह बरसात के महीने जून-जुलाई-अगस्त-सितंबर में ज्यादातर फैलता है।
  • गन्दगी तथा घनी आबादी वाले क्षेत्र में यह तेजी से फैलता है।
  • यह ज्यादातर बच्चों को प्रभावित करता है।
  • स्त्रियों की अपेक्षा पुरुष ज्यादा प्रभावित होते हैं।
  • प्रदूषित जल भोजन, मक्खियाँ इसे फैलाने में सहायक है।
  • पोलियो से प्रभावित बच्चों को मांस पेशी में इन्जेक्शन देने से बचें।
  • माँ के दूध में बच्चों को पोलियो से बहुत हद तक बचाने की क्षमता 6 माह तक रहती है।
  • संक्रमित होने के 7 से 14 दिनों तक इसका प्रभाव रहता है। (9) पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम पूरे विश्व में जोर-शोर से चल रहा है। विगत 2-3 वर्षों से भारत में पोलियो का कोई नया केस नहीं मिला है।

लक्षण (Signs & Symptoms)

  • बुखार के साथ सर्दी-खाँसी, यह इसका शुरुआती लक्षण है।
  • कुछ लोगों में खुजलाहट तथा गर्दन एवं पीठ में अकड़न दिखाई देती है।
  • प्रभावित हिस्से की माँसपेशी काम करना बन्द कर देती है पर उनमें संवेदना बरकरार रहती है तथा लकवा हो जाता है।
  • अगर केन्द्रीय स्नायु तंत्र प्रभावित होता है तो व्यक्ति के चेहरे में विकृति तथा खाने पीने की वस्तु को ‘निगलने में दिक्कत होती है।
  • कभी-कभी श्वसन पेशियों के प्रभावित होने पर प्रभावित बच्चा साँस नहीं ले पाता है और फिर मर जाता है।
  • बहुत बार पोलियो संक्रमण सर्दी-खांसी-बुखार के साथ बिना कोई प्रभाव डाले भी ठीक हो जाता है।

रोकथाम

  • Oral Polio Vaccine (OPV) की मदद से हम इसे दूर भगाने के प्रयास कर रहे हैं। यह एक बहुत कारगर वैक्सीन है जिसे हम मुँह के रास्ते दो बूँद देकर पोलियो से बच सकते हैं।
  • यह टीका 0-5 वर्ष के बच्चों को 1-1 माह के अन्तराल पर देते हैं।
  • सर्व टीकाकरण कार्यक्रम (Universal Immunisation Programme) में तीन खुराक के बाद फिर 18-24 महीने में इसका बूस्टर खुराक देते हैं।
  • पल्स पोलियो कार्यक्रम यूनिवर्सल कार्यक्रम के अलावा पोलियों की अतिरिक्त खुराक समय-समय पर अभियान चलाकर घर-घर में बच्चों को देते हैं। इसमें पोलियो ड्रॉप दवा कंपनी से बच्चों को देने तक कोल्ड चेन प्रणाली बनाए रखते हैं।

हैजा (Cholera)

  • स्वास्थ्य-जागरूकता में वृद्धि और टीकाकरण की बजह से हैजा के मरीजों की संख्या कम हो गई है। यह बहुत ही खतरनाक बीमारी है।
  • यह विब्रियो कॉलरी नामक बैक्टीरिया की वजह से होता है।
  • यह बैक्टीरिया व्यक्ति की छोटी आंत में मौजूद होकर वृद्धि करता है तथा एक्सोटॉक्सिन मुक्त करता है। इसके द्वारा विमुक्त एक्सोटॉक्सिन स्नायुतंत्र को प्रभावित करता है और पानी (मांड के रंग का) की तरह दस्त होते हैं उल्टी होती है और मरीज शीघ्र गंभीर निर्जलन (dehydration) का शिकार हो जाता है।
  • यदि समय पर उचित रिहाइड्रेशन और समुचित उपचार नहीं मिला तो मरीज मर भी सकता है।

कारण

  • इसका मूल कारण कॉलरा विडियो (Cholera vibreo) नाम का बैक्टीरिया है जो प्रदूषित जल या भोजन के रास्ते हमारी आंत तक पहुँच कर अपना विकास करता है।
  • बरसाती मक्खियाँ गदे सहे- गले पदार्थों से एवं कटे हुए फलों के सम्पर्क से यह तेजी से फैलता है।
  • निम्न आर्थिक सामाजिक स्तर वाले अशिक्षित लोग इसके अक्सर शिकार होते हैं।
  • बारिश के मौसम में यह अधिक फैलता है।

लक्षण

  • अपने आप ही पतला मांड जैसा लगातार दस्त होना।
  • उल्टी तथा अत्यधिक प्यास लगना।
  • मरोड़ के साथ पेट में दर्द, आँखें धंस जाना (Shunken eye) एवं त्वचा के लचीलेपन में कमी (झुर्रियाँ दिखना)।
  • जीभ सूखना।
  • साँस फूलना।
  • पेशाब में कमी और लम्बे समय तक बीमारी से किडनी फेल्योर और फिर हार्ट फेल्योर होती है और मृत्यु

निमोनिया (Pneumonia)

  • निमोनिया रोग निमोनी निमोकोक्कस नामक बैक्टीरिया के कारण होता है।
  • इसमें बच्चों के फेफड़े प्रभावित होते हैं, जिससे बच्चे साँस लेने में तकलीफ महसूस करते हैं।
  • यदि सही समय पर इसका सही उपचार न किया जाए तो अक्सर बच्चों की मृत्यु तक हो सकती है।
  • यह एक वायुजनित संक्रामक रोग है, जो एक बच्चे से दूसरे तक फैलता है अतः इससे बच्चों को अलग रखते हैं।
  • कुपोषित बच्चे इसकी चपेट में ज्यादा आसानी से आ जाते हैं।
  • दो महीने से 5 वर्ष तक के बच्चे इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।

लक्षण

  • असामान्य ढंग से साँस फूलना।
  • खौसी और बुखार / नाक बहना (सदी)।
  • अत्यधिक सुस्ती एवं नींद आना और जम्हाई लेना।
  • सायनोसिस होतो, नाखून और उँगलियों का पीला पड़ जाना।
  • बच्चे को निगलने में तकलीफ होने से वह कुछ भी खा-पी नहीं पाता।
  • उपचार में देरी, सही इलाज नहीं होना या आधा-अधूरा इलाज बच्चे को मौत के मुँह तक पहुँचा सकता है।

रोकथाम के उपाय

  • माँ का दूध पीने वाले बच्चों को निमोनिया का खतरा कम होता है। माँ के दूध से बच्चे में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
  • यदि हमारा रहन-सहन भीड़-भाड़ वाला न हो धूल-मिट्टी, धुँआ आदि से रहित हो तो निमोनिया होने की संभावना कम हो जाती है।
  • संतुलित आहार लेने वाले बच्चे निमोनिया की चपेट में कम आते हैं।
  • घर की औरतों को निमोनिया के बारे में तथा स्वास्थ्य की अन्य मूल-भूत बातों के बारे में बताएं।
  • ठंड के मौसम में अपने बच्चों को गरम कपड़े पहनाकर रखें।

तपेदिक (ट्यूबरक्यूलोसिस)

  • टीबी, राजरोग, तपेदिक, यक्ष्मा आदि नामों से ख्यात यह बीमारी ऐसे तो पूरे विश्व में व्याप्त है पर, विकासशील देशों में इसकी संख्या सबसे अधिक है।
  • हर साल लगभग 2 से 3 लाख लोग इसके शिकार होते हैं। भारत में भी यह बीमारी बहुतायत में पायी जाती हैं।
  • तपेदिक निम्न और निम्न-मध्यमवर्गीय लोगों को अधिक होता है।
  • भीड़-भाड़ वाले क्षेत्र में यानि घनी आबादी में रहने वालों के बीच इसका प्रसार अधिक तेजी से होता है।
  • HIV संक्रमित मरीजों या वैसे मरीज जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) कम हो गई है उनमें यह जल्दी घर बना लेता है।
  • आज कल इसका इलाज बहुत आसान है, किन्तु आधे-अधूरे इलाज के कारण बहु औषधि (मल्टी-ड्रग-रेज़िस्टेन्ट) केस की संख्या बढ़ती जा रही है। यह खतरनाक है।
  • ज्यादातर यह हमारे फेफड़ों को प्रभावित करता है, पर लिम्फ ग्रन्थि, हड्डी, आँत, मस्तिष्क आदि की टीबी के भी खूब मरीज मिलते हैं।
  • सरकार और अन्य संगठन टीबी उन्मूलन के लिए DOTS आदि कई कार्यक्रम चला रहे हैं इसका सुखद परिणाम भी आ रहा है, किन्तु आधे-अधूरे में ही दवा छोड़ने वालों की संख्या भी कम नहीं है, जो इनके उन्मूलन में बड़ी बाधा है।
  • पूरे कोर्स का इलाज होने से यह पूरी तरह ठीक हो सकता है।

टीबी कैसे फैलती है

  • यह वायुमार्ग से सांस के रास्ते फैलती है।
  • टीबी के मरीज के खाँसने से टीबी को बैक्टिीरिया हवा में निकलकर निकट के आदमी के साँस से श्वास नली के रास्ते बैक्टीरिया फेफड़ों में प्रवेश कर जाता है। फिर रे-धीरे अपना प्रसार करता है।
  • टीबी माइकोबैक्टीरिय ट्यूबरकुली गाय / भैंस नामक के कारण भी होते हैं और फैलते हैं। कमजोर इम्यूनिटी वाले व्यक्ति इससे जल्दी प्रभावित हो जाते हैं।

बैक्टीरिया के द्वारा होता है। इसके कुछ जन्तुजन्य प्रजाति,

अनपाश्च्युराइज्ड दूध के साथ

लक्षण

(1) फेफड़ों की टीबी खाँसी ऐसी खाँसी जो 3 सप्ताह से अधिक होने पर भी ठीक नहीं हो रही है।

बुखार रात के समय हल्का बुखार आते देखा गया है। खाँसी के साथ खंखार में खून भी आ सकता है- हीमोप्टीसिस

भूख कम लगना तथा शरीर का उत्तरोत्तर दुबला और कमजोर होते जाना

ये सब लक्षण फेफड़ों की टीबी के हैं- इसके अलावा दम फूलना, फेफड़ों में पानी भर जाने से सांस लेने में कठिनाई प्रभावित हिस्से में ये सब लक्षण भी मिल सकते हैं।

(2) आँत की टीबी

इसमें मरीजों को भूख कम लगना, उल्टी, पतला पाखाना, कब्ज, आंत्रावरोध (Intestinal Obstruction) के लक्षण मिल सकते हैं। बुखार भी साथ साथ हो सकता है। कालान्तर में कई जगहों से आँतें फट भी जाती हैं।

इसके कारण एक्ज्यूडेटिव द्रव (Exudative fluid) भी पेट में जमा हो जाता है।

(3) मस्तिष्क और हड्डी की टीबी प्रभावित हड्डी- ज्यादातर रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर हो जाता है, जिसके कारण कमर दर्द, पैर का लकवा (पैराप्लेजिया), दौरे (convulsion) तथा अनेकों मस्तिष्कजन्य लक्षण मिलते हैं, जो प्रभावित जगह के ऊपर पड़ने वाले दबाव पर निर्भर करते हैं।

बच्चों तथा बड़ों में लिम्फ ग्रन्थियों में भी टीबी होता हुआ देखा गया है इनकी ठीक से जाँच कर उचित

इलाज की जरूरत है। इसके अलावा ट्यूबरकुलस मेनिन्जाइटिस एवं गर्भाशय में भी टीवी हो सकती है।

इसके कारण बंध्यापन भी होता हुआ देखा जाता है।

प्रातिक्रिया दे

Written by GKTricksIndia