अपवाह तंत्र से क्या आशय है | अपवाह तंत्र नोट्स

इससे सम्बंधित प्रश्न अक्सर प्रतियोगी परीक्षाओं में आते हैं। सरल तरीक़े से आइये जाने कि अपवाह तंत्र से क्या आशय है | अपवाह तंत्र नोट्स

अपवाह तंत्र से क्या आशय है अपवाह तंत्र नोट्स
Dendritic drainage: the Yarlung Tsangpo River, Tibet, seen from space [image courtesy: NASA]

अपवाह तंत्र नोट्स

अपवाह तंत्र से क्या आशय है | अपवाह तंत्र क्या है

निश्चित वाहिकाओं के माध्यम से हो रहे जल प्रवाह को अपवाह कहते हैं। इन वाहिकाओं के जल को अपवाह तंत्र कहा जाता है। किसी क्षेत्र का यह तंत्र वहां की भूवैज्ञानिक समयावधि, चट्टानों की प्रकृति, संरचना, स्थलाकृति ढाल, बहते जल की मात्रा और बहाव की अवधि का परिणाम होता है। इस प्रकार अपवाह, नदी तंत्र है।

इस प्रकार अपवाह तंत्र से अभिप्राय नदियों के उस तंत्र से है जिससे धरातलीय जल प्रवाहित होता है।

इससे सम्बंधित विभिन्न शब्दावली

अपवाह द्रोणी

नदी अपने क्षेत्र का जल डाल के अनुरूप वह आकर ले जाती है तथा अंत में किसी झील सागर खाड़ी या समुद्र में जाकर मिल जाती है एक नदी एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा प्रवाहित क्षेत्र को अपवाह द्रोणी कहा जाता है। अर्थात् एक नदी तंत्र द्वारा जिस क्षेत्र का जल प्रवाहित होता है उसे एक अपवाह द्रोणी कहते हैं।

जल विभाजक (Watershed)

एक अपवाह द्रोणी को दूसरे से अलग करने वाली सीमा को जल विभाजक कहा जाता है। पर्वती या उच्च भूमि, दो पड़ोसी अपवाह द्रोणियों को एक दूसरे से अलग करती है। इस प्रकार की उच्च भूमि को जल विभाजक कहते हैं।

भारत में सैकड़ों छोटी बड़ी नदियां है जो देश के विभिन्न भागों में प्रवाहित होती है।

जल ग्रहण (Catchment)

एक नदी विशिष्ट क्षेत्र से अपना जल बहा कर लाती है जिसे जल ग्रहण क्षेत्र कहा जाता है।

अपवाह तंत्र के प्रकार

अपवाह तंत्र से क्या आशय है वर्गीकरण

क्रमबद्ध अपवाह तंत्र (Functional Drainage System)

ऐसी नदियाँ जो ढाल का अनुसरण करती है, उनसे संबंधित तंत्र को क्रमबद्ध कहा जाता है। क्रमबद्ध के निम्नलिखित प्रकार होते हैं-

अनुवर्ती अपवाह तंत्र

ढाल के अनुरूप बहने वाली नदियों को अनुवर्ती या अनुगामी कहते हैं। दक्षिण भारत की अधिकांश नदी अनुवर्ती श्रेणी की हैं। इन नदियों का प्रवाह नमन दिशा में होता है इसलिये इन्हें नतजल धारा भी कहा जाता है।

परवती अपवाह तंत्र

अनुवर्ती सरिताओं के पश्चातु उत्पन्न होने वाली तथा अपनतियों के अक्षों का अनुसरण करने वाली नदियों को परवर्ती कहा जाता है।

प्रति अनुवर्ती अपवाह तंत्र

मुख्य अनुवर्ती नदी की प्रवाह दिशा के विपरीत प्रवाहित होने वाली नदी को प्रति अनुवर्ती कहते हैं।

नवानुवर्ती अपवाह तंत्र

ढाल का अनुसरण तथा मुख्य अनुवर्ती नदी के प्रवाह की दिशा में प्रवाहित होने वाली नदी को नवानुवर्ती कहते हैं।

अक्रमबद्ध अपवाह तंत्र (Random drainage system)

जो नदियाँ क्षेत्रीय ढाल के प्रतिकूल तथा भू-वैन्यासिक संरचना के आर-पार प्रवाहित होती हैं उन्हें अक्रमबद्ध अथवा अक्रमवर्ती नदी कहा जाता है। अक्रमबद्ध नदियाँ दो प्रकार से विकसित होती हैं।

पूर्ववर्ती अपवाह तंत्र

इस पर संरचना तथा उत्थान का कोई असर नहीं पड़ता है। जिए क्षेत्र में अपवाह प्रणाली का विकास हो चुका है तथा बाद में नदियों के गमन मार्ग में स्थलखंडे का उत्थान हो जाता है एवं नदी उत्थित स्थलखंड को काटकर अपने पुराने प्रवाह मार्ग का अनुसरण करती है, तो ऐसे प्रवाह को पूर्ववर्ती कहा जाता है। भारतीय उपमहाद्वीप में सिंधु, सतलज एवं ब्रह्मपुत्र नदियाँ इस प्रवाह प्रणाली की प्रमुख उदाहरण हैं।

अध्यारोपित अपवाह तंत्र

जिन क्षेत्रों के भू-आकृतिक प्रदेश में स्थलीय संरचना निचली संरचना से अलग होती हैं तो इस प्रकार की प्रवाह प्रणाली का विकास होता है। इसका प्रमुख उदाहरण सोन नदी, चम्बल नदी, स्वर्ण रेखा नदी एवं बनास आदि नदियाँ हैं।

अपवाह प्रतिरूप 

इसके ज्यामितिक आकार तथा सरिताओं की स्थानिक व्यवस्था की किसी भी देश में अपवाह प्रतिरूप कहा जाता है।

यह उस प्रदेश की संरचना, नदियों की स्थिति तथा संख्या, प्रवाह दिशा, ढाल चट्टानों की विशेषता, प्लेट विवर्तनिकी कारकों तथा हलचलों, जलवायु तथा वनस्पति स्वरूप आदि से नियंत्रित होती है। अतः अपवाह प्रतिरूप के अध्ययन में उक्त कारक समाविष्ट हैं। 

सामान्यत: निम्नलिखित प्रवाह प्रतिरूप विकसित होते हैं-

द्रुमाकृतिक प्रतिरूप या वृक्षाकार प्रतिरूप : दक्षिण भारत की अधिकांश नदियाँ वृक्षनुमा अपवाह का निर्माण करती हैं। 

समानांतर प्रतिरूप : यह प्रतिरूप तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों में विकसित होता है, जैसे- गंगा के ऊपरी मैदान की नदियाँ। -आयताकार प्रतिरूप : जहाँ चट्टानों का जुड़ाव आयत के रूप में होता जैसे- पलामू क्षेत्र की नदियाँ, कोसी और सहायक नदियाँ।

जालीनुमा प्रतिरूप : यह प्रतिरूप क्वेस्टा स्थलाकृति वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। पूर्वी सिंहभूम के पुराने वलित पर्वतों में जालीनुमा अपवाह प्रतिरूप मिलते हैं।

कंटकीय प्रतिरूप : यह प्रतिरूप सरिता अपहरण वाले भागों में विकसित देता है। सिंधु एवं ब्रह्मपुत्र नदियों की शीर्ष घाटी में ऐसे प्रतिरूप मिलते हैं।

अरीय प्रतिरूप: अमरकंटक पर्वत से निकलने वाली नर्मदा, सोन तथा महान अरीय तंत्र का निर्माण करती हैं। अभिकेंद्रीय प्रतिरूप : यह प्रतिरूप अंतः स्थलीय नदियों के प्रवाह क भागों में पाए जाते हैं, जैसे- तिब्बत, काठमांडू घाटी, लद्दाख आदि।

वलयाकार प्रतिरूप: यह प्रतिरूप गुबंदी संरचना के रूप में पाया दाता जैसे किऊल नदी (मुंगेर)।

मालाकार अपवाह: देश की सर्वाधिक नदियाँ समुद्र में मिलने से पहले कई शाखाओं में विभक्त होकर डेल्टा बनती हैं जिससे गुम्फित नदी या विलुप्त अपवाह का निर्माण होता है।

अपवाह तंत्र के प्रश्न उत्तर

अपवाह तंत्र से आप क्या समझते हैं?

अपवाह तन्त्र या प्रवाह प्रणाली (drainage system) किसी नदी तथा उसकी सहायक धाराओं द्वारा निर्मित जल प्रवाह की विशेष व्यवस्था है। यह एक तरह का जालतन्त्र या नेटवर्क है जिसमें नदियाँ एक दूसरे से मिलकर जल के एक दिशीय प्रवाह का मार्ग बनती हैं।

अपवाह तंत्र कितने प्रकार के होते हैं?

भारत में इसे दो वर्गो में विभाजित किया जाता है: क्रमवर्ती और अनुवर्ती

भारत में कितने अपवाह तंत्र हैं?

भारत में इसे दो भागों में बाँटा जाता है: हिमालय की नदियाँ और प्रायद्वीपीय नदियाँ।

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Written by GKTricksIndia