पृथ्वी के वायुमंडल की परतें

दोस्तों, हमारी पृथ्वी चारों ओर गैस की एक परत से घिरी हुई है, जिसे वायुमंडल कहा जाता है।

वायु के यह पतली परत इस ग्रह (यानी हमारी पृथ्वी) का महत्वपूर्ण और अटूट भाग है। यह हमें ऐसा वातावरण प्रदान करती है जिसमें हम लोग साँस लेते हैं, यह वायुमंडल हम लोगों को सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाती है।

यह वायुमंडल 1600 किमी की ऊँचाई तक फैला है। वायुमंडल को उसके घटकों (यानी उसमें पाये जाने वाली चीजें), तापमान तथा अन्य के आधार पर 5 परतों में बाँटा जाता है।

इन परतों को पृथ्वी की सतह से शुरू करें तो इनके नाम हैं:

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image credit: NCERT

1. क्षोभमंडल (Troposphere)

  • यह वायुमंडल की सबसे नीचे की परत है। 
  • यह वायुमंडल की सबसे महत्वपूर्ण परत है, क्योंकि हम मनुष्य इसी मण्डल में मौजूद वायु में साँस लेते हैं।
  • इसकी औसत ऊँचाई 13 किलोमीटर है। ध्रुव के निकट 8 किलोमीटर तथा विषुवत वृत्त पर 18 किलोमीटर की ऊँचाई तक है।
  • यानी क्षोभमंडल (Troposphere) की मोटाई विषुवत वृत्त पर सबसे अधिक होती है, क्योंकि तेज वायु प्रवाह के कारण ताप का अधिक ऊँचाई तक संवहन (convection) किया जाता है।
  • इस परत को संवहन मंडल भी कहते है, क्योंकि संवहन धारायें इसी मंडल की सीमा तक सीमित होती हैं।
  • इस परत में प्रत्येक 165 किलोमीटर की ऊँचाई पर तापमान 1° सेल्सियस से घटता जाता है।
  • इस परत में धूलकण और जलवाष्प मौजूद होते हैं। 
  • मौसम की लगभग सभी घटनायें जैसे वर्षा, कुहरा, और ओला वर्षण इसी परत के अंदर होती है।

2. समतापमंडल (Stratosphere)

  • क्षोभमंडल (Troposphere) और समतापमंडल (Stretosphere) को अलग करने वाले भाग को क्षोभसीमा कहते हैं।
  • इसकी औसत ऊँचाई 50 किलोमीटर हैं।विषुवत वृत्त के ऊपर क्षोभसीमा (stratopause) में हवा का तापमान -80° सेल्सियस और ध्रुव के ऊपर -45° सेल्सियस होता है। यहाँ तापमान स्थिर होने के कारण इसे क्षोभसीमा कहते हैं।
  • समतापमंडल (Stretosphere) क्षोभसीमा (stratopause) के ऊपर 50 किलोमीटर की ऊँचाई तक पाया जाता है।
  • मौसम की लगभग सभी घटनाओं से लगभग मुक्त होता है, लिहाज़ा इस परत की परिस्थितियाँ हवाई जहाज़ उड़ाने के लिए आदर्श होती हैं।
  • कभी-कभी इस परत में विशेष प्रकार के बादलों का निर्माण होता है, जिन्हें मूलाभ मेघ (Mother of pearl cloud) कहते हैं।
  • इस परत की महत्वपूर्ण विशेषता- ओज़ोन गैस की परत है। यह परत सूर्य से आने वाली ख़तरनाक पराबैगनी किरणों (Ultraviolate rays) से जीव-जंतुओं की रक्षा करती हैं।
  • ओज़ोन परत को नष्ट करने वाली गैस CFC (Cholor-floro-carbon) है, जो एयर कंडीशनर, रेफ़्रिज़रेटर इत्यादि से निकलती हैं। ओज़ोन परत को यह नुक़सान CFC में मौजूद सक्रिय क्लोरीन के कारण होता है।
  • ओज़ोन परत की मोटाई नापने में डाब्सन इकाई का इस्तेमाल होता है।

3. मध्यमंडल (Mesosphere)

  • समतापमंडल (Stretosphere) के ठीक ऊपर होती है।
  • इसकी औसत ऊँचाई 80 किलोमीटर है।
  • इस परत में ऊँचाई के साथ-साथ तापमान में कमी होने लगती है और 80 किलोमीटर की ऊँचाई तक पहुँच कर यह -100° सेल्सियस हो जाता है।
  • अंतरिक्ष में प्रवेश करने वाले उल्का पिंड (Meteorite) इस परत में आने पर जल जाते हैं।
  • मध्यमंडल (Mesosphere) के ऊपरी परत को मध्यसीमा कहते हैं।

4. बाह्य वायुमंडल (Thermosphere)

  • मध्यमंडल (Mesosphere) के ठीक ऊपर होती है।
  • इसकी औसत ऊँचाई 80 से 400 किलोमीटर है।
  • यहाँ पर बढ़ती ऊँचाई के साथ तापमान अत्यधिक तेज़ी से बढ़ता है।
  • इस परत की महत्वपूर्ण विशेषता है- आयन मंडल।
  • आयन मंडल, मध्यमंडल के ऊपर (80 से 400 किलोमीटर के बीच) होता है। कम वायु दाब और पराबैगनी किरणों (Ultraviolet rays) द्वारा यहाँ पर विद्युत आवेशित कण बनते रहते हैं, चूँकि इसमें विद्युत आवेशित कण पाए जाते हैं, जिन्हें आयन कहते हैं, इसलिए इसे आयनमंडल के नाम से जाना जाता है। 
  • आयनमंडल का उपयोग हम मनुष्य रेडियो संचार के लिए करते हैं।यानी पृथ्वी से प्रसारित रेडियो तरंगे इस परत द्वारा पुनः पृथ्वी पर परावर्तित कर दी जाती हैं। संचार उपग्रह इसी परत में होते हैं।

5. बहिर्मंडल (Exosphere)

  • वायुमंडल की सबसे ऊपरी परत बहिर्मंडल (Exosphere) कहलाता है।
  • इसकी ऊँचाई 640 किलोमीटर से ऊपर होती है, इसकी कोई ऊपरी सीमा निर्धारित नहीं है।
  • हल्की गैसें जैसे- हीलियम और हाइड्रोजन यहीं से अंतरिक्ष में तैरती रहती हैं।
  • इस परत में मौजूद सभी घटक विरल हैं, जो धीरे-धीरे बाहरी अंतरिक्ष में मिल जाते हैं।
  • इस परत की विशेषता है: औरोरा आस्ट्रालिस (aurora borealis) और औरोरा बोरियालिस (aurora australis) की होने वाली घटनाएँ।औरोरा शाब्दिक अर्थ है: प्रातः काल(dawn) जबकि बोरियालिस और आस्ट्रालिस का अर्थ क्रमशः ‘उत्तरी’ और  ‘दक्षिणी’ होता है। इसी कारण उत्तरी ध्रुवीय प्रकाश (aurora borealis) और दक्षिणी ध्रुवीय प्रकाश (aurora australis) कहते हैं।
  • वास्तव में औरोरा, ब्रह्मांडीय चमकते प्रकाश होते हैं, जिनका निर्माण चुम्बकीय तूफ़ान के कारण सूर्य की सतह से निकले इलेक्ट्रॉन तरंग के कारण होता है। ये ध्रुवीय आकाश में लटके विचित्र बहुरंगी आतिशबाजी की तरह (प्रायः आधी रात के समय) दिखते हैं।
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Written by GKTricksIndia